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Friday 13 April 2018

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद दिखाया क्रांतिकारी रूप


23  मार्च 1931


 वो दिन है जब देश के तीन वीरों ने हंसते-हंसते माँ भारती के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फाँसी की दी गई । 
                                  ये वो तीन वीर थे जिन्होंने इतिहास का नया आयाम लिखा है। जिनके लिए सर्वप्रथम देशहित था। जिन्होंने अपनी पूरी जवानी मां भारती के लिए न्योछावर कर दी। इन वीरों की शहादत की पूरी गाथा तो सब जानते है लेकिन आज हम आपको सरदार भगत सिंह के कुछ ऐसे संघर्षो की जानकारी देंगे जिससे शायद आप अनभिज्ञ है।


सरदार भगत सिंह जीवन परिचय



भगत सिंह का जन्म लायलपुर ज़िले के (अब पाकिस्तान में) बंगा में 27 सितंबर,1907 को हुआ था। भगत सिंह के जन्म-दिवस पर मतभेद है। कई पुस्तकों में इनका जन्म-दिवस 28 सितंबर व कहीं-कहीं इनका जन्म-दिवस अक्टूबर भी दिया गया है। कुछ विद्वानों ने 27 सितंबर 1907 तो कुछ ने 28 सितंबर बताया है।

               उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था। भगत सिंह के पूर्वजों का जन्म पंजाब के नवांशहर के समीप खटकड़कलां गांव में हुआ था। भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह पहले सिख थे जो आर्य समाजी बने। इनके तीनों सुपुत्र किशन सिंह, अजीत सिंह व स्वर्ण सिंह प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे।

                 भगत सिंह एक अच्छे वक्ता, पाठक व लेखक भी थे। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखा व संपादन भी किया। उनमे मुख्य कृतियां हैं,

 'एक शहीद की जेल नोटबुक (संपादन: भूपेंद्र हूजा), 
सरदार भगत सिंह : पत्र और दस्तावेज (संकलन : वीरेंद्र संधू),
 भगत सिंह के संपूर्ण दस्तावेज (संपादक: चमन लाल)।

                कॉलेज के दिनों में भगत सिंह ने एक्टर के रूप में कई नाटकों मसलन राणा प्रताप, सम्राट चंद्रगुप्त और भारत दुर्दशा में हिस्सा लिया।

जलियांवाला   बाग हत्याकांड के बाद दिखाया क्रांतिकारी रूप


             13 अप्रैल, 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह पर गहरा असर डाला और वे भारत की आजादी के सपने देखने लगे। भगत सिंह के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आने का एक बहुत बड़ा कारण था, उनका लाहौर स्थित ‘नर्सरी ऑफ पैट्रिआट्स’ के रूप में विख्यात नैशनल कॉलेज में सन् 1921 में दाखिला लेना। इस कॉलेज की शुरुआत लाला लाजपत राय ने की थी। तब भगत सिंह ने चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर क्रांतिकारी संगठन तैयार किया। 

                    8 अप्रैल, 1929 को गिरफ्तार होने से पूर्व उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की प्रत्येक गतिविधि में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। 1920 में जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया, उस समय भगत सिंह मात्र 13 वर्ष के थे और 1929 में जब गिरफ्तार हुए तो 22 वर्ष के। इन 9 वर्षों में उनकी एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में गतिविधियां किसी भी देशभक्त से कम नहीं थी।

फांसी का तख्ता उसका मंडप बना...

              जानकर हैरानी होगी कि परिजनों ने जब भगत सिंह की शादी करनी चाही तो वह घर छोड़कर कानपुर भाग गए। अपने पीछे जो खत छोड़ गए, उसमें उन्होंने लिखा कि उन्होंने अपना जीवन देश को आजाद कराने के महान काम के लिए समर्पित कर दिया है। इसलिए कोई दुनियावी इच्छा या ऐशो-आराम उनको अब आकर्षित नहीं कर सकता। 

             ऐसे में शहीद-ए-आजम की शादी हुई पर कैसे हुई इसके बारे में बताते हुए भगत सिंह की शहादत के बाद उनके घनिष्ठ मित्र भगवती चरण वोहरा की धर्मपत्नी दुर्गा भाभी ने, जो स्वयं एक क्रांतिकारी वीरांगना थीं, कहा था, ‘‘फांसी का तख्ता उसका मंडप बना, फांसी का फंदा उसकी वरमाला और मौत उसकी दुल्हन।’’

23 मार्च 1931 को शाम 7 बजे...

               लाहौर षड़यंत्र मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फाँसी की सज़ा सुनाई गई व बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास दिया गया। और 24 मई 1931 को फांसी देने की तारीख नियत हुई। लेकिन लोगो का बढ़ता हुआ आक्रोश देख नियत तारीख से 11 घंटे पहले ही 23 मार्च 1931 को उनको शाम 7 सात बजे फांसी दे दी गई, जो कि नाजायज तौर पर दी गई थी। उनके नाम एफआईआर में थे ही नहीं फिर भी झूठ को सच बनाने के लिए पाक सरकार ने 451 लोगों से झूठी गवाही दिलवाई।

भगतसिंह का बचपन

5 वर्ष की बाल अवस्था में ही भगतसिंह के खेल भी अनोखे थे। वह अपने साथियों को दो टोलियों में बांट देता था और वे परस्पर एक-दूसरे पर आक्रमण करके युद्ध का अभ्यास किया करते। भगतसिंह के हर कार्य में उसके वीर, धीर और निर्भीक होने का आभास मिलता था।

चर्ख का क्यों  नास्तिक क्यों हूँ

यह आलेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था जो लाहौर से प्रकाशित समाचारपत्र "द पीपल" में 27 सितम्बर 1931 के अंक में प्रकाशित हुआ था। भगतसिंह ने अपने इस आलेख में ईश्वर के बारे में अनेक तर्क किए हैं। इसमें सामाजिक परिस्थितियों का भी विश्लेषण किया गया है।

उसे यह फ़िक्र है हरदम,
नया तर्जे-जफ़ा क्या है?
हमें यह शौक देखें,
सितम की इंतहा क्या है?
दहर से क्यों खफ़ा रहे,
चर्ख का क्यों 

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